अक्सर देखा गया है कि लोगो को ये लगता है कि Civil मामलों में FIR नहीं दर्ज होती है | लेकिन ये पूरा सच नहीं है Civil Matter क्या है इस के बारे में हमको जानकारी मिलती है ,CPC(Code Of Civil Procedure) के सेक्शन 9 में और Civil मैटर में Civil सूट फाइल होता है |
अगर हम क़ानून की बात करते है तो यहाँ कुछ भी वनलाइनर नहीं है ,हर क़ानून के कुछ अपवाद(Exception) होते है | Civil नेचर के जो मैटर होते है उसमें आमतौर पर क्रिमिनल(Criminal) केस नहीं चलता है ,FIR भी नहीं हो सकती है ,Civil मैटर Civil कोर्ट में चलते है |
Civil मैटर में अपवाद (Exception)
सिविल मैट्स में आमतौर पर FIR नहीं हो सकती है लेकिन इस के भी कुछ अपवाद(Exception) है ,उदाहरण के लिए दो लोगो के बीच में एक contract हुआ और अनुबंध का उल्लंघन(Breach of Contract) होने के बाद जिसको भी उपचार(Remedy) चाहिए वो एक सिविल सूट फाइल करेगा ,ऐसा सब लोगो को पता है | लेकिन इस का अपवाद(Exception) आप को मिलेगा सेक्शन 357 भारतीय न्याय संहिता(BNS) में मिलेगा |
इस सेक्शन में कहा गया है कि एक ऐसा व्यक्ति है जो असमर्थ है ,और उसने किसी और को अपनी मदद के लिए रखा है ,और संविदात्मक संबंध(Contractual Relation) में उसके साथ पैसे का लेनदेन कर रहा है ,और किसी दिन वो नहीं आता/आती है ,और अपनी सर्विस नहीं देता है | इस मामले में वो FIR दर्ज हो सकती है|ये मामला वैसे तो एक सिविल मैटर लेकिन BNS कहती है ,इस मामले में ,क्योंकि ये मामला ग़ैर संज्ञेय अपराध(Non Cognizable Offence) इस में पार्टी सीधे जुडिसियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास कोर्ट(Judicial Magistrate First Class Court) में शिकायत कर सकता है ,इसमें तीन महीने का कारावास हो सकता है |
इस तरह का एक और मामला है चेक अनादरित(Cheque Dishonoured) का जब हम इस की बात करते है तो ये एक सिविल ट्रांजेक्शन है ,जिसमे किसी भी सेवा या समान का भुगतान कोई भी आदमी Cheque से करता है | अगर चेक बाउंस हो गया तो वैसे तो ये Civil मैटर है लेकिन परक्राम्यलिखत अधिनियम(The Negotiable Instruments Act ) 1881 का सेक्शन 138 ये कहता है कि Judicial Magistrate First Class Court में ये मैटर जा सकता है और आदमी को दो साल की सजा हो सकती है |
एक ऐसा ही मामला है मानहानि (Defamation) का जिसकी परिभाषा आप को भारतीय न्याय संहिता(BNS) के सेक्शन 356 में मिलती है | मानहानि अपनेआप में सिविल मैटर है ,लेकिन BNS इस को एक दंडनीय अपराध (Punishable Offence) बनती है |
आमतौर पर सिविल मैटर्स में FIR दर्ज नहीं हो सकती है ,लेकिन क्रिमिनल केस फाइल हो सकते है ,कंप्लेन के ज़रिए जो की आप को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता(BNSS) के सेक्शन 223 में देखने को मिलती है |
सिविल मैटर में FIR भले ही दर्ज ना हो लेकिन क्रिमिनल प्रोसीडिंग चल सकती है | उम्मीद करते हैं कि आप लोगो का कॉन्सेप्ट अब सिविल मैटर को ले कर ख़त्म हो गया होगा |
सुमित कुमार एक अनुभवी क़ानूनी पेशेवर वकील है ,जिनका मुख्य उद्देश क़ानून की जटिलताओं को आसान भाषा में बताना है | क्रिमिनल और सिविल क़ानून के क्षेत्र में 5 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ,इस क्षेत्र में अपने काम के मध्यम से व्यापक रूप में योगदान दिया है |